विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) को लेकर देशभर में गजब का क्रेज देखने को मिल रहा है। कश्मीरी पंडितों पर 1990 के दौर में हुए बर्बर अत्याचार पर बनी यह फिल्म जहां बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई कर रही है, वहीं सिनेमाघरों में जमकर नारेबाजी हो रही है। अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे सितारों से सजी इस फिल्म की कहानी (The Kashmir Files Story) 1989 में शुरू हुए कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन पर आधारित है। फिल्म को लेकर दो तरह की बातें हो रही हैं। एक जो पॉप्युलर है कि फिल्म ने नरसंहार के सच को दुनिया के सामने रखा है और दूसरी वो कि फिल्म ने कला और सिनेमा के नाम पर कुछ ऐसा दिखाया है जो शांति और अमन से जी रहे समाज को बांटने का काम कर रहा है। फिल्म को लेकर तमाम तरह की बहस हो रही है। लेकिन इसी बीच ओपनिंग डे पर 700 स्क्रीन्स पर रिलीज हुई यह फिल्म पहले वीकेंड से 2000 स्क्रीन्स पर दिखाई जा रही है और अब दूसरे वीकेंड से 4000 स्क्रीन्स से अधिक पर दिखाई जाएगी। इसका सच, उसका सच और इन सब के बीच आधा सच, जिसके बीच दर्शक और आम जनता भी है, जो फिल्म की कहानी और किरदारों के बीच उलझकर रह जाती है। आइए, इसी उलझन को सुलझाते हैं।
द कश्मीर फाइल्स का प्लॉट | The Kashmir Files Plot Summary
फिल्म का पहला फ्रेम एक प्यार भरे माहौल में दहशत की दस्तक से शुरू होता है। कुछ बच्चे टीवी देख रहे हैं। क्रिकेट का मैच चल रहा है। एक बच्चा सचिन तेंदुलकर की परफॉर्मेंस पर खुश होता है। सचिन-सचिन के नारे लगाता है। दूसरा बच्चा उसे आकर चुप करवाता है। कहता है कि नारेबाजी मत करो। तभी वहां कुछ बड़े आते हैं और सचिन का नारा लगाने वाले बच्चे को पीटने लगते हैं।
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‘द कश्मीर फाइल्स’ की कहानी दहशत की इसी दस्तक से आगे बढ़ती है। फिल्म बताती है कि 19 जनवरी 1990 की उदास शाम थी। कश्मीर में सामाजिक-राजनीतिक अशांति थी। घाटी में नारे गूंज रहे थे। धरती के स्वर्ग के आसमान को डर और अनहोनी के बादलों ने घेर लिया था। एक नेता और कश्मीरी पंडित टीकालाल टपलू की कुछ महीने पहले हत्या कर दी गई थी। समाज का ध्रुवीकरण हो गया था और साम्प्रदायिक घृणा ने पूरी घाटी को अपनी चपेट में ले लिया था। इसी कड़ी में पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) का परिवार भी इस हंगामे के बीच फंस गया है। शिवा उनका पोता है। वह अभी भी अपने दोस्त अब्दुल के साथ बाहर है। कांपते हुए पुष्कर नाथ दोनों बच्चों को उठाकर घर ले जाते हैं। जेकेएलएफ (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) के एरिया कमांडर फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे जबरदस्ती उनके घर में घुस जाता है। वह पुष्कर के बेटे की तलाश कर रहा है, जिसके खिलाफ भारत सरकार का मुखबिर होने का आरोप लगाते हुए फतवा जारी है। फारूक अहमद डार ने पुष्कर के बेटे को बेरहमी से गोली मारी और परिवार के अन्य सदस्यों को छोड़ दिया, क्योंकि वह चाहता था कि तबाही की खबर भारत के कोने-कोने में फैल जाए।
‘द कश्मीर फाइल्स’ की कहानी यहां से 30 साल आगे बढ़ती है। हम देखते हैं कि पुष्कर नाथ पंडित के चार दोस्त उनके पोते कृष्णा के आने का इंतजार कर रहे हैं। ब्रह्मा दत्त और उनकी पत्नी लक्ष्मी दत्त, डॉ महेश कुमार, डीजीपी हरि नारियन, और विष्णु राम का इंतजार बेसब्र है। तय होता है कि कोई भी पुष्कर नाथ के जवान पोते के सामने पलायन के बारे में बात नहीं करेगा। कृष्णा 1990 में परिवार के पलायन के लंबे समय बाद कश्मीर आ रहा है।
अब हम पुष्कर नाथ पंडित के पोते कृष्णा पंडित को जेएनयू में पढ़ते और यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट बनने के लिए चुनाव लड़ते हुए देखते हैं। हम उसे ऐसे लोगों से घिरे हुए देखते हैं जो यह मानते हैं कि कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय कर रही है और इससे भी जरूरी बात यह है कि वहां रहने वाले युवाओं का भविष्य खराब कर रही है। यह भी कि कश्मीर में युवाओं को पथराव करना ही था, क्योंकि भारत सरकार ने उनके पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा था। कृष्णा की टीचर राधिका मेनन इस बारे में बहुत वोकल है। वह उसे गाइड करती है और बताती है कि उसे यह नैरेटिव बेचनी चाहिए जो लार्जर दैन लाइफ है।
कृष्णा उनकी बातें समझ नहीं पाता। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह किस पर भरोसा करे। वह अपने दादा को देखता है, जो जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए लड़ रहे थे और विरोध कर रहे थे। वो आर्टिकल जिसने कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया था। पुष्कर नाथ अपने घर वापस जाना चाहते थे। उनका कहना है कि सपने तभी सच होते हैं जब आप उनका पीछा करते हैं। लेकिन उनकी यह दौड़ खत्म हो जाती है। उनके घर लौटने का सपना अधूरा रह जाता है। वह अपने पोते को कश्मीर में अपने घर में राख बिखेरने और अपने चार प्यारे दोस्तों से मिलने के लिए कहते हैं, जिनके साथ उनकी बहुत अच्छी यादें थीं।
द कश्मीर फाइल्स’ के अंत में क्या हुआ?
पुष्कर नाथ पंडित ने अपने पोते से हमेशा कहा था कि उनके माता-पिता और बड़े भाई शिव की एक दुर्घटना में मौत हो गई। वह नहीं जानता था कि उन्हें आतंकवादी समूह जेकेएलएफ द्वारा बेरहमी से मारा गया था। अपने दादाजी के दोस्तों की बात सुनकर उसकी सोच उलझनों में फंस जाती है। वह हमेशा मानता था कि कश्मीरी पंडितों का पलायन भारत सरकार द्वारा रचा गया एक धोखा था। लेकिन अब उसने महसूस किया कि जो सच सामने था, वह एक मुखौटा था। उसकी टीचर राधिका मेनन ने उसे घाटी में किसी से मिलने के लिए कहा था, ताकि वह कश्मीर की असल दुर्दशा को समझ सके। वह शख्स असल में फारूक अहमद डार था, जिसने उसके माता-पिता की हत्या की थी। वह आतंकवादी नेता अब खुद प्यार और शांति का झंडा लेकर सबसे आगे चल रहा है। वह कृष्णा से कहता है कि उसके परिवार को भारतीय सेना ने मारा था, न कि जेकेएलएफ के लोगों ने।
कृष्णा वापस आता है और ब्रह्म दत्त पर आरोप लगाता है कि उन्होंने उसे किसी ऐसी चीज पर भरोसा करने के लिए गुमराह किया जो पूरी तरह से बनावटी है। सच्चाई से कोसों दूर। तभी ब्रह्म दत्त अपने शांत स्वभाव से उलट आपा खो देते हैं। ब्रह्म दत्त देखते हैं कि उनके दोस्त का पोता यह मान रहा है कि निर्दोष कश्मीरी पंडितों को और यहां तक कि उसके अपने परिवार की मौत के लिए कोई और जिम्मेदार है। अब वह कृष्णा को वो सब बताते हैं, जो उन्होंने देखा था। उन्होंने बीते हुए कल और दहशत के उस दौर में हुई हत्याओं का एक-एक सिरा कृष्णा के सामने खोलकर रख दिया। कृष्णा को अब हर एक बात की विस्तार से जानकारी है। वह अपनी फैमिली के बलिदान और कश्मीरी पंडितों को सता रहे दर्द को जानता है। वह जानता है कि कैसे उसकी मां ने खून से सने हुए चावल खाए और कैसे उसके दादा ने उसकी पढ़ाई के लिए पैसे बचाए।
कृष्णा वापस जेएनयू जाता है। वह इस बार फिर बोलता है। लेकिन वो नहीं, जो उसने पढ़ा था या वो नहीं जो उसे राधिका मेनन ने बताया था। वह दिल से बोलता है। उसने जो देखा और जो महसूस किया, उसके बारे में बोलता है। वह एक ऐसे परिवार से आया था, जिसने बर्बर अत्याचार को देखा था, और जिसके सामने आशंकाओं की गुंजाइश नहीं थी। कृष्णा पंडित ने अब अपनी खुद की बात रखी। इस बार वह किताब की व्याख्याओं या अब तक बताई गई, पढ़ाई गई बातों से प्रभावित नहीं हुआ। उसने उन आंखों में दुर्दशा देखी थी और वह जानता था कि शब्द भ्रम पैदा कर सकते हैं, लेकिन आंखें कभी झूठ नहीं बोलतीं।
द कश्मीर फाइल्स’ में नदीमर्ग की वह घटना भी दिखाई गई है, जिसमें 24 कश्मीरी पंडितों को बिना सोचे-समझे गोली मार दी गई थी। इस कत्ल-ए-आम को फिल्मी पर्दे पर दिखाया तो गया है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह घटना 2003 की थी। और तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। पर्दे पर इस तरह की घटना को देखना भयावह है। यह सच है कि कश्मीरी पंडितों के दर्द पर सिनेमाई पर्दे पर बहुत कम बात हुई है। यह भी सच है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने जिस मुद्दे को उठाया है, उसकी तारीफ होनी चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि फिल्म जो दिखा रही है, वह क्रूरता की हद है। यह एकतरफा कहानी भी है, क्योंकि पूरी फिल्म में एक भी किरदार ऐसा नहीं दिखाया गया है जो दूसरी तरफ की कहानी बताए। यानी एक भी किरदार उस समुदाय विशेष से नहीं है, जिसे फिल्म में नेक दिल दिखाया गया है। यह अपने आप हैरान करने वाली बात है कि मेकर्स ने इस पक्ष का ध्यान कैसे नहीं रखा।
फिल्म 170 मिनट की है। विवेक अग्नहोत्री फिल्म के डायरेक्टर हैं। अनुपम खेर ने फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित का किरदार निभाया है। कृष्णा के किरदार में दर्शन कुमार हैं। फिल्म 8 दिनों में भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 114.50 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है।
द कश्मीर फाइल्स’ film के मुख्य पात्र
मिथुन चक्रवर्ती
मिथुन चक्रवर्ती एक फिल्म अभिनेता सामाजिक कार्यकर्ता और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं इन्हें बॉलीवुड यूनिवर्सिटी में दादा के नाम से भी जाना जाता है। इस फिल्म में इन्हें आईएस ब्रह्म दत्त की भूमिका में हैं।
अनुपम खेर
अनुपम खेर हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध चेहरा है। इन्होंने एक से बढ़कर एक कई हिट फिल्में दी है। 2004 में इन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है। इस फिल्म में इन्होंने पुष्कर नाथ पंडित का भूमिका निभाया है। इस फिल्म में इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
दर्शन कुमार
दर्शन कुमार भारतीय अभिनेता इन्होंने अपने फिल्म की शुरुआत प्रियंका चोपड़ा के साथ की थी। वर्ष 2014 में मैरी कॉम फिल्म फिल्म में प्रियंका चोपड़ा के साथ दिखा था। द कश्मीर फाइल फिल्में इनकी भूमिका कृष्णा पंडित के रूप में दिखाया गया है। इस फिल्म की कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
पल्लवी जोशी
पल्लवी जोशी भारतीय फिल्म और टेलीविजन की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री है। इस फिल्म में पल्लवी जोशी ने राधिका मेनन के रूप में किरदार निभाया है। जो जेएनयू की एक प्रोफेसर है।
चिन्मय मंडलेकर
चिन्मय मंडलेकर द कश्मीर फाइल फिल्म का एक महत्वपूर्ण पात्र है। इस फिल्म में गाने फारुख मलिक बिट्टा के रूप में अभिनय किया है।
प्रकाश बेलावाड़ी
प्रकाश वेलावरी ने द कश्मीर फाइल फिल्म में डॉ महेश कुमार के रूप में अपना अभिनय किया है।
पुनीत इस्सर
पुनीत इस्सर भारतीय फिल्म अभिनेता तथा निर्देशक है। इन्होंने ही महाभारत में दुर्योधन की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में इन्होंने डीजीपी हरि नारायण के रूप में अपना भूमिका निभाए हैं।
भाषा सुंबली
भाषा सुगली एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेत्री है। उन्होंने इस फिल्म में शारदा पंडित के रूप में अपना अभिनय प्रस्तुत किया है।
सौरभ वर्मा
सौरभ वर्मा हिंदी फिल्म जगत का एक मशहूर चेहरा है। उन्होंने इस फिल्म में अफजल के रूप में अभिनय किया है।
मृणाल कुलकर्णी
मृणाल कुलकर्णी भारतीय फिल्म और टेलीविजन की एक लोकप्रिय अभिनेत्री है। इन्होंने हिंदी तथा मराठी फिल्मों में काम किया है। इस फिल्म में इन्होंने लक्ष्मी दत्त के रूप में अदाकारी की है।
अतुल श्रीवास्तव
अतुल श्रीवास्तव एक भारतीय फिल्म के प्रसिद्ध अभिनेता है। इन्होंने कई फिल्मों जैसे मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई जैसी फिल्मों में काम किया है। इन्होंने इस फिल्म में विष्णु राम के रूप में भूमिका निभाई है।
अमन इकबाल
अमन इकबाल भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के प्रसिद्ध अभिनेता है। इन्होंने इस फिल्म में करण पंडित के रूप में अपना भूमिका निभाए हैं।